भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(41)
अति भाग बिभीषनके भले |
एक प्रनाम प्रसन्न राम भए, दुरित-दोष-दारिद दले ||

रावन-कुम्भकरन बर माँगत सिव-बिरञ्चि बाचा छले |
राम-दरस पायो अबिचल पद, सुदिन सगुन नीके चले ||

मिलनि बिलोकि स्वामि-सेवककी उकठे तरु फूले-फले |
तुलसी सुनि सनमान बन्धुको दसकन्धर हँसि हिये जले ||