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ज़िंदगी अजीब हो गयी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जिंदगी अजीब हो गयी
बेबसी नसीब हो गयी
जिंदगी खुशी को छोड़ कर
है बड़ी ग़रीब हो गयी
पुरवक़ार प्यार दोस्ती
वक्त की सलीब हो गयी
रौशनी तो मिल नहीं सकी
तीरगी हबीब हो गयी
रौशनी जो दूर थी खड़ी
किस क़दर क़रीब हो गयी
थी नहीं पसंद जो कभी
वो जुबां अदीब हो गयी
आंसुओं से सींचते रहे
पीर पर रक़ीब हो गयी