जीवन जिया मैंने
कहूंगी नहीं ये मरते हुए ।
अफ़सोस नहीं, न ही किसी पर आरोप लगाने की ज़रूरत ।
उन्माद के तूफ़ानों और प्यार के कारनामों से अधिक
और भी हैं ज़रूरी चीज़ें इस दुनिया में ।
तुम जो पंखों से
दस्तक देते थे मेरी छाती पर
अपराधी हो मेरी युवा प्रेरणा के ।
तुम मान लो ज़िन्दा रहने का मेरा आदेश,
मैं भी मानती रहूंगी तुम्हारी हर बात ।
रचनाकाल : 30 जून 1918
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह