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पावस - 3 / प्रेमघन

चंचला चौंकि चकी चमकै, नभ वारि भरे बदरा लगे धावन।
कुंजन चातक मंजु मयूर, अलाप लगे ललचाय मचावन॥
छाय रह्यो घनप्रेम सबै हिय, मानिनी लाग्यो मनोज मनावन।
साजन लागीं सिंगार सजोगिन, आवत ही मनभावन सावन॥