भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रामआसरे, आग और हम / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
इसका नाम रामआसरे है
यह एक आग पर सवार है
एक आग है
जो इस पर सवार है
यह आग के रंग को
नहीं पहचानता
पर आग इसके रंग और इसके ढंग को भी
पहचानती है।
तेज़ है आग की आंच
पर रामआसरे इस आंच को
महसूस नहीं करता
जो आग इस पर सवार है
वह आग भी आग पर सवार है
एक तीसरी आग और भी है
जो माहौल में फैली है
उस आग की
कोई शक्ल तय नहीं
वह दिशा ढूंढती आग है
हम खामोश हैं
रामआसरे अनजान,
कभी भी धधककी जो आग
तो रामआसरे उस आग के सैलाब को
ठेलने में
शामिल होगा?
या हर आग दूसरी आग पर हावी होगी
और हम अग्निसागर की लहरों पर
वहीं के वहीं
तैरते रहेंगे
तब रामआसरे का क्या होगा?