भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हम इस ख़ुशी के दौर में मर जायँ तो अच्छा
यों तो न रुक सकी कभी कूची तेरी, रंगसाजरँगसाज़!
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा