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पीड़ा के अभिशाप व्याल-से
काल-भाल को डसते जाते
:::और आह के अथाह स्रोत :::इस अंतस्तल में :::श्वासों के बड़वानल के मिस :::दर्दीले तूफ़ान मचलते ।
समय बदलता रहा
प्रगति भी सदा रही है,
इसमें कड़वे औ' मीठे
सब फल उगते हैं ।
:::मीठा-मीठा स्वाद :::सदा ही कुछ पाते हैं :::कुछ को केवल :::कड़वे फल ही मिल पाते हैं ।
</poem>
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