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व्याध बिनवत दो‌ऊ कर जोरे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग विहाग-तीन ताल)

व्याध बिनवत दो‌ऊ कर जोरे।
‘मोतें देव ! दयानिधि ! भारी दोष भयो भोरे।
 मैं जान्यौ ठाढ़ौ मृग मगमें ताते तेहि मार्‌यो।
 बेध्यौ पाद-पदुम प्रभु केञ्रौ कूञ्र कुञ्मति हार्‌यौ॥
 दीजै दंड पतित पापी कौं सकुञ्च न करि सपने’।
 प्रभु कह-’तेरौ दोष नहीं कछु हौं प्रेरक अपने’॥