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शिकार / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
विषादयुक्त चेहरे
चेहरों पर चढ़े मुखौटे
टँगे हैं जैसे खूँटी पर
एक दो तीन चार...
गिनती में शायद वे दस हैं
तलाशते हुए कोई शिकार ।