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सुबह-सुबह / मरीना स्विताएवा
Kavita Kosh से
सुबह-सुबह अधिकतम धीमी हॊती है ख़ून की गति ।
सुबह-सुबह अधिकतम स्पष्ट होती है चुप्पी ।
मन लेता है तलाक निष्क्रिय हाड़-माँस से ।
और पंछी लेता है तलाक हड्डीयों के पिंजरे से ।
आँखें देखती हैं- अदृश्य दूरियाँ,
हृदय देखता है- अदृश्य सम्बन्ध...
कान गाते हैं- अश्रव्य प्रार्थनाएँ...
क्षत-विक्षत ईगर के लिए रोती है दिव
अन्तिम पंक्ति= रूसी साहित्य की सबसे पुरातन कृति "ईगर सैन्य-अभियान गाथा" में वर्णित एक घटना की चर्चा है यहाँ।
रचनाकाल : 17 मार्च 1922
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह