भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सज्जन और दुर्जन / मुंशी रहमान खान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:35, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुंशी रहमान खान |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सज्‍जन परहित करत नित दुर्जन अनहित घात।
कहा बिगारो विष्‍णु ने भृगु ने मारी लात।।
भृगु ने मारी लात रीति यहि दुर्जन केरी।
राम गए बनोवास खुटाई केकई चेरी।।
विष्‍णु रहे निज धाम राम बनोवास मुदित मन।
कहैं रहमान सदाहित करहीं दुख उठाय निज तन पर सज्‍जन।।