भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कारी बदरिया ऊनई अरे तै जिन बरसो हो / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:38, 13 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कारी बदरिया ऊनई अरे तै जिन बरसो हो।
माथे अजुल जू कै सैरो अरे तैं जिन बरसो हो।
माथे बबुलजू के सैरो अरे तैं जिन भिजावैं हो।
माथे काकुल जू के सैरो अरे तैं जिन भिजावैं हो।
कारी बदरिया ऊनई अरे तैं जिन बरसो हो।
माथे दूल्हा राजा के सैरों तू जिन भिजावैं हो।