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'इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लिया / सिया सचदेव

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इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लिया
इस दुनिया से अपना नाता तोड़ लिया

जहाँ से लौट के आना भी है नामुमकिन
ऐसे जग से अपना रिश्ता जोड़ लिया

जिस्म लगे बेजान मगर हम जीते हैँ
हम से सब ख़ुशियों ने रिश्ता तोड़ लिया

पत्थर तो बदनाम बहुत है ज़ख्मो मे
हमने तो शीशे से ही सर फोड़ लिया

घुट घुट कर आंसू की बूँदें पीते है
क़तरों ने नदियां से रिश्ता जोड़ लिया

जब तक न टूटे सांसों कि डोर सिया
मैंने राम के नाम से रिश्ता जोड़ लिया