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अँखियाँ हमारी दई मारी सुधि बुधि हारी / दास
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अँखियाँ हमारी दईमारी सुधि बुधि हारी,
मोहूँ तें जु न्यारी दास रहै सब काल में
कौन गहै ज्ञाने,काहि सौंपत सयाने,कौन
लोक ओक जानै,ये नहीं हैं निज हाल में
प्रेम पगि रहीं, महामोह में उमगि रहीं,
ठीक ठगि रहीं,लगि रहीं बनमाल में
लाज को अंचै कै,कुलधरम पचै कै वृथा,
बंधन संचै कै भई मगन गोपाल में