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"अंग दर्पण / भाग 3 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर

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श्रवण-वर्णन

सीप स्रवन या रमनि की कैसे होय समान।
जा प्रसंग तजि मुकुत गन यामैं बसैं निदान।।25।।

मुकुतायुत श्रवण-वर्णन

मुकुत भए घर खोइ कै बैठेकृकानन आय...।
अब घर खोवत कौन के कीजे आन उपाय।।26।।

तरौना-वर्णन

जटित तरौना स्रवन मैं यहि बिधि करत बिलास।
पिता तरनि कीनो मनो पुत्र करन घर बास।।27।।

खुटिला-वर्णन

ठग तस्कर स्रुति सेइ के लहत साधु परमान।
ये खुटिला स्रुति सेइ के खुटिला रहे निदान।।28।।

कर्णफूल-वर्णन

करनफूल दुति धरन बिबि करन लसत इहि भाय।
मनों बदन ससि के उदै नखत दुहूँ दिसि आय।।29।।

भौंह-वर्णन

नाप नाप चुपचाप ह्वै अतनु छाप धनु आप।
आय गह्यो भव चाप अब परयो जगत के पाप।।30।।

तजि सिंहासन राज अरु डासन रंक विसेखि।
छुटे आसन कौन को भौंह सरासन देखि।।31।।

भौंह-मरोर-वर्णन

ऐंठे ही उतरत धनुष यह अचरज... की बान।
ज्यौं ज्यौं ऐठाति भौं धनुष त्यों त्यों चढ़ति निदान।।32।।

पलक-वर्णन

यों तारे तिय दृगन के सोहत पलकन साथ।
मनो मदन हिय सीस बिधु धरे लाज के हाथ।।3।।

बरुनी-वर्णन

कारे अनियारे खरे कटकारे के भाव।
झपकारे बरुनी झप झपकारे घाव।।34।।