भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंधेरी डगर, हादसे चल रहे हैं / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:28, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
अंधेरी डगर, हादसे चल रहे हैं
जिगर के दिए ख़ून से जल रहे हैं
अजब ढंग के हैं जवानी के तेवर
बुज़ुर्गों को ये बेवजह खल रहे हैं
टपकता है दिल से लहू कतरा-कतरा
कि तेरे दिये ज़ख़्म यूँ पल रहे हैं
परायों की नज़रों को भाए हैं, लेकिन
हमारे ही अपने हमें छल रहे हैं
न कसमें, न वादे, न हसरत, न अरमां
जो सपने थे वो अश्क में ढल रहे हैं
गए थे वो ख़ुद रूठ कर मुझसे ‘देवी’
पशेमाँ हैं अब हाथ क्यूँ मल रहे हैं.