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अक्स जब आईने में मरता है / सूरज राय 'सूरज'

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अक्स जब आईने में मरता है।
तब ख़ुदी का नशा उतरता है॥

लौट आता है आसमां छूकर
दर्द जब भी उड़ान भरता है॥

ऐ ग़मे-दिल जो तू नहीं है तो
पल ख़ुशी का भी हो, अखरता है॥

ग़र्दिशों में भी लड़कपन दिल में
कौन है जो दुआएँ करता है॥

ऐसा लगता है कमरा-ए-दिल में
रात इक अजनबी ठहरता है॥

हाँ तआरुफ़ नहीं हैं "सूरज" से
बस मेरी राह से गुज़रता है॥