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अदा अजीब हुई, दिलकशी बि ख़ूब हुई / हरि दिलगीर

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अदा अजीब हुई, दिलकशी बि ख़ूब हुई,
अव्हां जी सूंहं भरी सादिगी बि खू़ब हुई।

ॾिठुमि त दिल जी सॼी काइनाति झूमी पई,
सुरीली सांति भरी राॻिणी बि ख़ूब हुई।

घुरी न तोखां सघियुसि, प्यारु मूंखे पाण ॾिनुइ,
सा बेवसी बि अजब, बेकसी बि ख़ूब हुई।

छॾे छपर में वया सभु, त तो सॾियो मूं खे,
अकेली ज़िन्दगी सा दुख भरी बि ख़ूब हुई।

अखियूं खुलियूं त मिड़ई रंग थी क्या ग़ाइब,
सा महृयत बि अजब, बेखु़दी बि खू़ब हुई।

समूरी राति सुम्ही कोन मां सघियुसि दिलगीर,
ख़मोश राज़ भरी रातिड़ी बि खू़ब हुई।