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आओ हम तुम खेल खेलें / रवीन्द्र दास

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आओ हम तुम खेल खेलें

जो मर्जी हो तुम वह बोलो

जो मर्जी हो हम समझेंगे

रोएंगे या गाएँगे

या हंस हंस कर चुप जाएँगे

तुम चाहो तो छू सकते हो

तन को ..मन को ...जो मर्जी हो

लेकिन कोई भी कुछ पूछे

समझो खेल ख़त्म हो आया

आओ खेलें ऐसा खेल