भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदि अनादि अनंत अखंड / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:28, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरव-ताल कहरवा)

आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं।
 अलख अगोचर रूप महेस कौ जोगि जती-मुनि ध्यान न पावैं॥
 आगम-निगम-पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुन गावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-१॥

 सृजन-सुपालन लय-लीला हित जो विधि-हरि-हर रूप बनावैं।
 एकहि आप विचित्र अनेक सुबेष बना‌इ कैं लीला रचावैं॥
 सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-२॥

 अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं।
 परम सुरय बसन-‌आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं॥
 ललित ललाट बाल-बिधु विलसै रतन-हार उर पै लहरावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-३॥

अंग विभूति रमाय मसान की विषमय भुजगनि कौं लपटावैं।
 नर-कपाल कर, मुंडमाल, गल, भालु-चरम सब अंग उढ़ावैं॥
 घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-४॥

सुनतहि दीन की दीन पुकार दयानिधि आप उबारन धावैं।
 पहुँच तहाँ अबिलंब सुदारुन मृत्यु को मर्म विदारि भगावैं॥
 मुनि मृकंञ्डु-सुत की गाथा सुचि अजहुँ बिग्यजन गा‌इ सुनावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-५॥

चा‌उर चारि जो ड्डूल धतूर के, बेल के पात औ पानि चढ़ावैं।
 गाल बजाय कै बोल जो ‘हरहर महादेव’ धुनि जोर लगावैं॥
 तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-६॥

बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्र्‌य नित्य सुख-सांति मिलावैं।
 आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चिा बकसावैं॥
 असरन-सरन काटि भव-बंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-7॥

औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं।
 दमन असांति, समन सब संकट, विरद बिचार जनहि अपनावैं॥
 ऐसे कृपालु कृपामय देब के? यों न सरन अबहीं चलि जावैं।
 बड़भागी नर-नारि सो‌ई जो सांब-सदासिव कौं नित ध्यावैं॥-८॥