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"आम की टहनी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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छू गयी चुटकी
 
छू गयी चुटकी
  
हंसी की हो गई बोहनी।
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हँसी की हो गई बोहनी।
  
  

13:43, 16 मई 2007 का अवतरण

लेखक: कैलाश गौतम

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देख करके बौर वाली

आम की टहनी

तन गये घुटने कि जैसे

खुल गयी कुहनी।


धूप बतियाती हवा से

रंग बतियाते

फूल-पत्तों के ठहाके

दूर तक जाते

छू गयी चुटकी

हँसी की हो गई बोहनी।


पीठ पर बस्ता लिये

विद्या कसम खाते

जा रहे स्कूल बच्चे

शब्द खनकाते

इस तरह

सब रम गये हैं सुध नहीं अपनी।


राग में डूबीं दिशायें

रंग में डूबीं

हाथ आयी ज़िन्दगी के

संग में डूबीं

कल

उतरने जा रही है खेत में कटनी