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"आवाज़ों को सुनसानों तक ले जाने दो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आवाज़ों को सुनसानों तक ले जाने दो।
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कुछ पानी रेगिस्तानों तक ले जाने दो।
 
कुछ पानी रेगिस्तानों तक ले जाने दो।
  
आँखों के रिश्ते काजल से आगे भी हों,
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ग़म के किस्से मुस्कानों तक ले जाने दो।
 
ग़म के किस्से मुस्कानों तक ले जाने दो।
  
लड्डू-पेड़े पाषाणों पर खूब चढाते,
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लड्डू-पेड़े पाषाणों पर खूब चढाते
 
कुछ उसमें से इन्सानों तक ले जाने दो।
 
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वो लोकसभा, वो राजसभा क्या करती है,
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वो लोकसभा, वो राजसभा क्या करती है
 
यह जनता के भी कानों तक ले जाने दो।
 
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यह देश गरीबों का भी है पैसे वालो,
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यह देश गरीबों का भी है पैसे वालो
 
कुछ उनके भी अरमानों तक ले जाने दो।
 
कुछ उनके भी अरमानों तक ले जाने दो।
  
 
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16:33, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

आवाज़ों को सुनसानों तक ले जाने दो
कुछ पानी रेगिस्तानों तक ले जाने दो।

आँखों के रिश्ते काजल से आगे भी हों
ग़म के किस्से मुस्कानों तक ले जाने दो।

लड्डू-पेड़े पाषाणों पर खूब चढाते
कुछ उसमें से इन्सानों तक ले जाने दो।

वो लोकसभा, वो राजसभा क्या करती है
यह जनता के भी कानों तक ले जाने दो।

यह देश गरीबों का भी है पैसे वालो
कुछ उनके भी अरमानों तक ले जाने दो।