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"आ रही रवि की सवारी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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कलि-कुसुम से पथ सजा है, | कलि-कुसुम से पथ सजा है, | ||
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बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी। | बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी। | ||
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छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी। | छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी। | ||
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चाहता, उछलूँ विजय कह, | चाहता, उछलूँ विजय कह, | ||
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पर ठिठकता देखकर यह- | पर ठिठकता देखकर यह- | ||
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रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी। | रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी। | ||
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10:40, 7 नवम्बर 2011 का अवतरण
आ रही रवि की सवारी।
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी।
विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।
आ रही रवि की सवारी।
चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह-
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी।