भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आ री नींद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 +
{{KKCatLori}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आ री नींद, लाल को आ जा।
 
आ री नींद, लाल को आ जा।

13:55, 17 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

आ री नींद, लाल को आ जा।
उसको करके प्यार सुला जा।।
तुझे लाल हैं ललक बुलाते।
अपनी आँखों पर बिठलाते।।
तेरे लिए बिछाई पलकें।
बढ़ती ही जाती हैं ललकें।।
क्यों तू है इतनी इठलाती।
आ-आ मैं हूँ तुझे बुलाती।।
गोद नींद की है अति प्यारी।
फूलों से है सजी-सँवारी।।
उसमें बहुत नरम मन भाई।
रूई की है पहल जमाई।।
बिछे बिछौने हैं मखमल के।
बड़े मुलायम सुंदर हलके।।
जो तू चाह लाल उसकी कर।
तो तू सो जा आँख मूँदकर।।
मीठी नींदों प्यारे सोना।
सोने की पुतली मत खोना।।
उसकी करतूतों के ही बल।
ठीक-ठीक चलती है तन कल।।