भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईमानदारी / सुधा चौरसिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतना ईमानदार मत बनो
समय की नजाकत पहचानो
देखो तुम्हारी संतान
तुम्हारा गला टीपने को तैयार बैठी है

आश्चर्य है!
तुमने उन्हें पैदा करने से पहले
सोचा नहीं, कि जमाना बदल गया है
तुम उनसे ईमानदारी, मेहनत
और नैतिकता की बात नहीं कर सकते

उन्हें चाहिए
तुम्हारी भरी हुई जेब
तुम्हारी ईमानदारी
तुम्हारी लाचारी नहीं
तुम कटघरे में हो
उन्हें पैदा करने की एवज में
अब सारी जिंदगी तुम्हें
सम्मान की भीख माँगनी पड़ेगी
पर वे तुम्हें छोड़ेंगे नहीं

इसलिए सचेत हो जाओ
अपनी रक्षा के लिए
अपने खिलफ़ हो जाने के सिवा
दूसरा रास्ता बनता ही नहीं...