भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उतरते हुए / रमेश रंजक

3 bytes removed, 07:57, 26 दिसम्बर 2011
जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
घूमते रहे
महँगी पोशाकों के बग़ीचे में आहि्स्तेआहिस्ते
हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,069
edits