भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एकली घेरी बन में आन स्याम / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 9 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=फा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एकली घेरी बन में आन स्याम तेने या के ठानी रे
स्याम मोहे बिन्दराबन जानो लौट के बरसाने आनो
जे मोहे होवे अबेर लरैं देवरानी जेठानी रे
एकली घेरी बन...
दान दधि को देजा मेरो कंस के खसम लगे तेरो
मारूं कंस मिटाऊं बंस ना छोडूँ निसानी रे
एकली घेरी बन...
दान मैं कभी न दूँगी रे कंस ते जाय कहूंगी रे
आज तलक या ब्रज में कोई भयो न दानी रे
एकली घेरी बन...