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एक मज़बूर माँ / भावना कुँअर

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जी हाँ, मैं माँ हूँ एक मज़बूर माँ मैं भी होती थीबड़ी धनवान औसक्षम कभीहो गई मज़बूर मैं आज बड़ी।मेरे रिश्तों की टूटीजब से कड़ी।हुई मुझसे इक बड़ी -सी भूलबँध करके मैंनेमोहपाश मेंअपना घर,धनसब दे डाला।अब बूढ़ी हो चलीकाँपते हाथपर पेट की भूख खूब सताती।घुटनों से बेकार पर फिर भीघर-घर हूँ जाती।पूरे दिन मैंमेहनत करतीतब जाकरकहीं भूख मिटाती।सँभाले मैंनेपाँच-पाँच थे बेटे।पर उनसे अब देखो ये कैसेलाचार, बूढ़ी बेबस,अकेली माँनहीं सँभाले जाती।
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