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एक यात्रा के दौरान / ग्यारह / कुंवर नारायण

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कवि: कुंवर नारायण

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बाहर किसी घसीट लिखावट में

लिखे गए परिचित यात्रा-वृत्तान्त के

फरकराते दृश्यों को बिना पढ़े

पन्नों पर पन्ने उलटती चली जाती रफ़्तार :

विवरण कहीं कहीं रोचक

प्लॉट अव्यवस्थित, उथले विचार, उबाऊ विस्तार !


भीतर एक डब्बे में खचाखच भरा

एक टुकड़ा भारतीय समाज

मानो कहानियों, फिल्मों, कॉमिक्स, अख़बार आदि से

लेकर बनाये गये चरित्रों का कोलाज ।