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"एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे / बृज नारायण चकबस्त" के अवतरणों में अंतर

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साक़िया जाते हैं, महफ़िल तेरी आबाद रहे।
  
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बाग़बाँ दिल से वतन को ये दुआ देता है,
 
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मैं रहूँ या न रहूँ ये चमन आबाद रहे।
साक़िया जाते हैं, महफ़िल तेरी आबाद रहे ।। 
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बाग़बाँ दिल से वतन को यह दुआ देता है,
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कौन कहता है कि गुलशन में न सय्याद रहे।
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बाग़ में लेके जनम हमने असीरी झेली,
 
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हमसे अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे।
हमसे अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे ।
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11:39, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे,
साक़िया जाते हैं, महफ़िल तेरी आबाद रहे।

बाग़बाँ दिल से वतन को ये दुआ देता है,
मैं रहूँ या न रहूँ ये चमन आबाद रहे।

मुझको मिल जाय चहकने के लिए शाख़ मेरी,
कौन कहता है कि गुलशन में न सय्याद रहे।

बाग़ में लेके जनम हमने असीरी झेली,
हमसे अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे।