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"कभी कभी यूँ भी हमने अपने ही को बहलाया है / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है <br> | कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है <br> |
16:17, 23 अक्टूबर 2007 का अवतरण
कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है
उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है
कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है