भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करि की चुराई चाल, सिंह को चुरायो कटि / बेनी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 26 फ़रवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करि की चुराई चाल हरि की चुराई लंक,
शशि को चुरायो मुख नासा चोरी कीर की।
पिकको चुरायो बैन मृग को चुरायो नैन,
दसन अनार हंसी बीजुरी अधीर की॥
कहै कवि ‘बैनी’ बेनी ब्याल सों चुराय लीन्हों,
रती रती शोभा सब रति के शरीर की।
अब तो कन्हैयाजू को चित्तहू चुराय लीन्हों,
छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीरकी॥