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"कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र" के अवतरणों में अंतर

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ये आग जमाने में तेरे घर से न फैले
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भर दी जमाने ने बहुत तलख़ियां इसमें  
दीवाने को महफ़िल से उठा सोच समझकर<br><br>
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'साग़र' की तरफ़ हाथ बढा सोच समझकर<br><br>
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08:44, 15 मई 2015 के समय का अवतरण

कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच समझकर
ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर

कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर
कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर

वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए
उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर

कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन जाए
मांगा करो जीने की दुआ सोच समझकर

आवारा बना देंगे ये आवारा ख़यालात
इन ख़ाना बदोशों को बसा सोच समझकर

ये आग जमाने में तेरे घर से न फैले
दीवाने को महफ़िल से उठा सोच समझकर

भर दी जमाने ने बहुत तलख़ियां इसमें
'साग़र' की तरफ़ हाथ बढा सोच समझकर