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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहाँ के ऊजे लामू<ref>लम्बा</ref> लहेरिया<ref>चूड़ी बेचने वाला, लहेरी</ref>।
झुलनियाँ वाली तोर<ref>तुम्हारी</ref> चूड़ी कते में<ref>कितने में</ref> बिकाऊ?॥1॥
हमरो जे चुड़िया साँवरो<ref>साँवली, श्याम वर्ण की</ref> लच्छ<ref>लाख</ref> रूपइया।
तोर बहियाँ घूमि घूमि जाय।
झुलनियाँ वाली तोर चूड़ी कते में बिकाऊ?॥2॥
हमरो जे पियवा साँवरो बड़ रँगरसिया।
बने बने<ref>वन-वन में</ref> बँसिया बजावे।
झुलनियाँ वाली तोर चूड़ी कते में बिकाऊ?॥3॥
शब्दार्थ
<references/>