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"कहीं गरजे कहीं बरसे / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर

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बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,
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मगर क्या बात है ऐसी, कहीं गरजे कहीं बरसे।
  
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जवानी पूछती मुझसे बुढ़ापे की कसम देकर,
कहो क्यों पूजते पत्थर रहे तुम देवता कहकर ।<br><br>
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कहो क्यों पूजते पत्थर रहे तुम देवता कहकर।
  
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कहीं तो शोख सागर है, मचलता भूल मर्यादा,
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे ।<br><br>
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कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे।
  
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किसी निष्ठुर हृदय की याद आती जब निशानी की,
मुझे तब याद आती है कहानी आग-पानी की ।<br><br>
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मुझे तब याद आती है कहानी आग-पानी की।
  
किसी उस्ताद तीरन्दाज़ के पाले पड़ा जीवन,<br>
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किसी उस्ताद तीरन्दाज़ के पाले पड़ा जीवन,
निशाने साधता दो-दो पुराने एक ही शर से ।<br><br>
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निशाने साधता दो-दो पुराने एक ही शर से।
  
नहीं जो मंदिरों में है, वही केवल पुजारी है,<br>
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नहीं जो मंदिरों में है, वही केवल पुजारी है,
सभी को बाँटता जो है, कहीं वह भी भिखारी है ।<br><br>
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सभी को बाँटता जो है, कहीं वह भी भिखारी है।
  
प्रतीक्षा में जगा जो भोर तक तारा, मिटा-डूबा<br>
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प्रतीक्षा में जगा जो भोर तक तारा, मिटा-डूबा
जगाता पर अरूण सोए कमल-दल को किरण-कर से।<br><br>
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जगाता पर अरूण सोए कमल-दल को किरण-कर से।
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13:59, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण

बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,
मगर क्या बात है ऐसी, कहीं गरजे कहीं बरसे।

जवानी पूछती मुझसे बुढ़ापे की कसम देकर,
कहो क्यों पूजते पत्थर रहे तुम देवता कहकर।

कहीं तो शोख सागर है, मचलता भूल मर्यादा,
कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे।

किसी निष्ठुर हृदय की याद आती जब निशानी की,
मुझे तब याद आती है कहानी आग-पानी की।

किसी उस्ताद तीरन्दाज़ के पाले पड़ा जीवन,
निशाने साधता दो-दो पुराने एक ही शर से।

नहीं जो मंदिरों में है, वही केवल पुजारी है,
सभी को बाँटता जो है, कहीं वह भी भिखारी है।

प्रतीक्षा में जगा जो भोर तक तारा, मिटा-डूबा
जगाता पर अरूण सोए कमल-दल को किरण-कर से।