भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी झुकि / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyKrushn}} | ||
<poem> | <poem> | ||
कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी झुकि , | कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी झुकि , |
20:18, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी झुकि ,
काल्हि झाँकी है ग्वालि गवाछनि ।
देखी है नोखी सी चोखी सी कोरिन ,
ओछे फिरै उभरे चित जाछनि।
मारेइ जाति निहारै मुबारक यै ,
सहजै कजरारे मृगाछनि ।
सीँक लै काजर दे री गँवारिनि ,
आँगुरी तेरी कटैगी कटाछनि ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।