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काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश

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रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |
 
जूझै बै जुझार सा
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले
कुण किण सें ज्या हार |
 
धान निमड्गो कोठले
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में
बची भाग में रेत |
 
हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही
बणगी आज सराप |
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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |
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