भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |
जूझै बै जुझार सा
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले
कुण किण सें ज्या हार |
धान निमड्गो कोठले
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में
बची भाग में रेत |
हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही
बणगी आज सराप |
--------------------------------------
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |
<poem>