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"कुछ जगह उनके दिल में पा ही गयी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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लाख पत्तों में छिप रहे थे गुलाब
 
लाख पत्तों में छिप रहे थे गुलाब
गंध भोंरों को पर बुला ही गयी
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गंध भौंरों को पर बुला ही गयी
 
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09:37, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कुछ जगह उनके दिल में पा ही गयी
मैं नहीं तो मेरी कथा ही गयी

उनकी चुप्पी ने हमसे कुछ न कहा
पर कहीं पर तो गुल खिला ही गयी

प्रीत ने पाँव फूँक-फूँक दिए
फिर भी मंज़िल पे धोखा खा ही गयी

हम तो ख़ुश हैं कि इस बिगड़ने में
कुछ तो किस्मत हमें बना ही गयी

बेबसी उन झुकी निगाहों की
कुछ न कहकर भी कुछ बता ही गयी

हम हज़ारों ही जाल फेंका किये
ज़िन्दगी पर नज़र फिरा ही गयी

लाख पत्तों में छिप रहे थे गुलाब
गंध भौंरों को पर बुला ही गयी