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"कुछ तो कलमनवीसी का हमको हुनर नहीं / शर्मिष्ठा पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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12:19, 3 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

कुछ तो कलमनवीसी का हमको हुनर नहीं
कुछ आपकी शागिर्दी ने आवारा कर दिया

जाते थे पहले भी निकाले महफ़िलों से हम
इस बार साफगोई ने बंजारा कर दिया

कब तलक बेचें शाइरी रोटी के वास्ते
ईमान के खजाने ने नाकारा कर दिया

माशूकों की बस्ती में रोज़ होती चाँद-रात
हमको तो फ़िक्रे-बल्ब ने बेचारा कर दिया

घर में न सही दिल में जगह तो शपा को दो
अख़लाक़ ने दुश्मन को भी हमारा कर दिया