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कैसी होगी दुनिया / सोनी पाण्डेय

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मैंने सबसे पहले
छिपाना सीखा
आँसू
फिर दर्द
फिर जरुरतों का
घोंटती गयी गला
और एक दिन भूल गयी
कि मैं भी कुछ थी
ये एहसास बड़ा विचित्र था
कुछ होने का
कभी सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली
जब भी समय मिला
माँ थी
पत्नी थी...बहू और बेटी थी
सब थी
बस नहीं थी तो मैं
और इन दिनों
उफनने लगा है मन
जैसे उफनता है दूध
एक परत उफनती हुई
बहने लगी है
बहुत चिकनी है
इसी चिकनाई में कैद रही
सबको चिकनी सी गुड़िया
सोचती हूँ
मेरी चिकनाई उतरते
खुरदुरी, भोथर औरत जो बची
कैसी होगी दुनिया?