भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गोरी के जोबना / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
|भाषा=बुन्देली
 
|भाषा=बुन्देली
 
+
}}
 
+
<poem>
 
गोरी के जोबना हुमकन लगे,
 
गोरी के जोबना हुमकन लगे,
 
 
जैसे हिरनियों के सींग ।
 
जैसे हिरनियों के सींग ।
 
 
मूरख जाने खता फुनगुनू,
 
मूरख जाने खता फुनगुनू,
 
 
वे तो बाँट लगावे नीम ।
 
वे तो बाँट लगावे नीम ।
 
  
 
'''भावार्थ'''
 
'''भावार्थ'''
  
 
--'गोरी के उरोज उभरने लगे,
 
--'गोरी के उरोज उभरने लगे,
 
 
हिरनी के सींगों समान
 
हिरनी के सींगों समान
 
 
मूर्ख उन्हें फोड़े-फुन्सी समझ रहा है
 
मूर्ख उन्हें फोड़े-फुन्सी समझ रहा है
 
 
और वह उन पर नीम के पत्ते रगड़ कर लगा रहा है'
 
और वह उन पर नीम के पत्ते रगड़ कर लगा रहा है'
 +
</poem>

02:55, 6 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गोरी के जोबना हुमकन लगे,
जैसे हिरनियों के सींग ।
मूरख जाने खता फुनगुनू,
वे तो बाँट लगावे नीम ।

भावार्थ

--'गोरी के उरोज उभरने लगे,
हिरनी के सींगों समान
मूर्ख उन्हें फोड़े-फुन्सी समझ रहा है
और वह उन पर नीम के पत्ते रगड़ कर लगा रहा है'