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चकल्लस (कविता) / पढ़ीस

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अगहनी पुन्न्मासी क्यार म्याला देखि छकि आयउँ,
पयिसदा तीनि आना तूरि का परसाद घर लायउँ|
दुई घरी दउस के चढ़तयि रहकला भला अउ अदधा,
चलयि लागीं चह्वद्दी तें, कहाँ संभारू कयि पायउँ|
चला टिंडी तना मनई न ताँता टूट दुई दिन तक
कचरि छा सात गे तिनमा, अधमरा मयि घरयि आयउँ|