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"चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिये / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए
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हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए
  
चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए<br>
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सबको आता नहीं दुनिया को सता कर जीना
हर जगह आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए  
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ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए
  
सबको आता नहीं दुनिया को सजाकर जीना <br>
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क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए  
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मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए
  
क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए <br>
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मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए  
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मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए
  
मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का <br>
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कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें  
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ , मुझको वहाँ से सुनिए
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कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें <br>
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किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए
 
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए
  
चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी <br>
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चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी  
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए
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ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए</poem>

15:14, 12 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए
हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए

सबको आता नहीं दुनिया को सता कर जीना
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए

क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए

कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए

चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए