भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ,
 
चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ,
जोग के प्रयोग में हियौ तो बिलस्यौ रहै ।
+
::जोग के प्रयोग में हियौ तो बिलस्यौ रहै ।
 
कहै रतनाकर सु-अंतर मुखी ह्वै ध्यान,
 
कहै रतनाकर सु-अंतर मुखी ह्वै ध्यान,
मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहै ॥
+
::मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहै ॥
 
ऐसे करौं लीन आतमा कौं परमात्मा में,
 
ऐसे करौं लीन आतमा कौं परमात्मा में,
जामैं जड़-चेतन बिलस बिकस्यौ रहै ।
+
::जामैं जड़-चेतन बिलस बिकस्यौ रहै ।
 
मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि,
 
मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि,
सो तौ सब अंतर-निरंतर बस्यौ रहै ॥30॥
+
::सो तौ सब अंतर-निरंतर बस्यौ रहै ॥30॥
 
</poem>
 
</poem>

09:19, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ,
जोग के प्रयोग में हियौ तो बिलस्यौ रहै ।
कहै रतनाकर सु-अंतर मुखी ह्वै ध्यान,
मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहै ॥
ऐसे करौं लीन आतमा कौं परमात्मा में,
जामैं जड़-चेतन बिलस बिकस्यौ रहै ।
मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि,
सो तौ सब अंतर-निरंतर बस्यौ रहै ॥30॥