भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छत के किसी कोने में / सुकीर्ति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
<poem>
 
छत के किसी कोने में
 
छत के किसी कोने में
  
पंक्ति 21: पंक्ति 22:
  
 
कि अब गिरी…अब गिरी.
 
कि अब गिरी…अब गिरी.
 
  
 
वर्षा थम चुकी है
 
वर्षा थम चुकी है
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
  
 
गिरती है ‘टप्प’ से
 
गिरती है ‘टप्प’ से
 +
</poem>

09:34, 24 मार्च 2012 के समय का अवतरण

छत के किसी कोने में

अटकी वह बूंद

टीन पर ‘टप्प’ गिरी

समय के अंतराल पर

गिरना जारी है उसका

लय-सीमा बंधी वह

गिरने के बीच

प्रतीक्षा दहला देती है

कि अब गिरी…अब गिरी.

वर्षा थम चुकी है

छत से बहती तेज धार

एकदम चुप है

पर यह धीरे-धीरे संवरती

शक्ति अर्जित कर

गिरती है ‘टप्प’ से