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"जब खेली होली नंद ललन / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
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नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।
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कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।
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खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।
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डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
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गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।
  
जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।<br>
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जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।<br>
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कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।<br>
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होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।<br>
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यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।<br>
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डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।<br><br>
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गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।
 
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कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।<br>
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होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।<br>
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यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।<br>
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डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।<br>
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गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।<br><br>
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10:42, 15 मार्च 2014 के समय का अवतरण

जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।

जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।
कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।
होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।