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ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये / डी. एम. मिश्र

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ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये
हुस्न की ताक़त मुझे दिखला गये।

बढ़ गया जब इश्क का मेरे जुनूँ
चाँदनी की धार में नहला गये।

प्यार के दो बोल मीठे बोलकर
आइने-सी आँख को पिघला गये।

कब लगे वो अजनबी जैसे मुझे
कब मेरे वो अंक में इठला गये।

कब खुशी से भर दिया मेरा हृदय
कब कलेजा भी मेरा दहला गये।