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"जाने कितने ही उजालों का दहन होता है / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर

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जाने कितने ही उजालों का दहन होता है
 
जाने कितने ही उजालों का दहन होता है
  

07:42, 3 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

जाने कितने ही उजालों का दहन होता है

लोग कहते हैं यहाँ रोज़ हवन होता है


मंज़िलें उनको ही मिलती है कहाँ दुनिया में

रात—दिन सर पे बँधा जिनके क़फ़न होता है


जब धुआँ साँस की चौखट पे ठहर जाता है

तब हवाओं को बुलाने का जतन होता है


खोटे सिक्के कि कोई मोल नहीं था जिनका

आज के दौर में उनका भी चलन होता है


बस यही ख़्वाब फ़क़त जुर्म रहा है अपना

ऐसी धरती कि जहाँ अपना गगन होता है.