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"जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम" के अवतरणों में अंतर

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दिल अगर फूल सा नही होता
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जिंदगी को सजा नही पाया
यू किसी ने छला नही होता
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बोझ इसका उठा नही पाया
  
था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
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खूब चश्मे बदल के देख लिए
रोते रोते मरा नही होता
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तीरगी को हटा नही पाया
  
दिल में रहते है दिल रुबाओं के
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प्यार का मैं सबूत क्या देता
आशिको का पता नही होता
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चीर कर दिल दिखा नही पाया
  
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
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जो थका ही नही सज़ा देते
इश्क जब तक हुआ नही होता
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वो खता क्यों बता नही पाया
  
पाप की गठरी हो गई भारी
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वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
वरना इतना थका नही होता
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बोझ अपना उठा नही पाया
  
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
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आईने में खुदा को देखा जब
तो यू रुसवा हुआ नही होता
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ख़ुद से उसको जुदा नही पाया
  
जुर्म हालात करवा देते है
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नाम जगदीश है कहा उसने
आदमी तो बुरा नही होता
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और कुछ भी बता नही पाया
 
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ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
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वो किसी का सगा नही होता
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क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
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आदमी ग़र गिरा नहीं होता
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10:10, 26 अगस्त 2009 का अवतरण

जिंदगी को सजा नही पाया
बोझ इसका उठा नही पाया

खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नही पाया

प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नही पाया

जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नही पाया

वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नही पाया

आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नही पाया

नाम जगदीश है कहा उसने
और कुछ भी बता नही पाया